राजस्थान राजपूतों और मुगलों का सम्बंध

अकबर के काल मे राजस्थान मे मुख्य रूप से 6 राजपूत रियासतें थी।

  1. मेवाड़ – महाराणा उदयसिंह, राणा प्रताप, राजा अमर सिंह
  2. मारवाड़ – राव चन्द्रसेन, मोटा राजा उदय सिंह
  3. बूॅंदी – राव सुर्जन सिहं हाड़ा
  4. आमेर – राव भारमल, राव भगवान दास, महाराजा मानसिंह
  5. जैसलमेर – राव हरराय भाटी
  6. बीकानेर – राव कल्याणमल, राव रायसिंह

ये अकबर के समकालीन राजस्थान की राजपूत रियासतों के शासक थे।

  • अकबर ने राजपूतों के साथ सुलहकुल की नीति को अपनाया था।
  • अकबर की राजपूत नीति के उद्देश्य अपने दरबार मे शक्ति संतुलन की स्थापना करना तथा राजपूतों के सहयोग से साम्राज्य का विस्तार करना था।

अकबर की राजपूत नीति के तीन साधन थे।

  1. वैवाहिक सम्बन्ध – आमेर, बीकानेर, जैसलमेर एवं मारवाड़ (जोधपुर)
  2. मित्रता पूर्ण सम्बन्ध – बूंदी रियासत के साथ
  3. आक्रमण की नीति – मेवाड़ के साथ।
  • पहली रियासत आमेर थी जिसके शासक राव भारमल ने मुगलों की अधीनता को स्वीकार कर लिया।
  • मेवाड़ एक मात्र ऐसी रियासत थी जिसने अकबर के जीवनकाल में मुगलों की अधिनता को स्वीकार नही किया था।
  • अकबर ने राजपूत शासकों को अपने दरबार में उच्च पद एवं बड़े प्रान्तों की सूबेदारी प्रदान की थी।
  • 1605 ई0 में अकबर की मृत्यु के बाद शहजादा सलीम जहॉंगीर के नाम से मुगल बादशाह बना।
  • जहॉंगीर कालीन राजपूत नीति की सबसे बड़ी उपलब्धि 1615 ई0 में मुगल-मेवाड़ सन्धि के द्धारा मेवाड़ का मुगलों की अधीनता को स्वीकार करना था।
  • जहॉंगीर का विवाह भी दो राजपूत राजकुमारियों के साथ हुआ – आमेर की मानबाई तथा मारवाड़ की भानुमति (जगत गुसाई) के साथ।
  • जहॉंगीर स्वंय जोधाबाई का पुत्र था।
  • जहॉंगीर ने अपनी माता को मरियम उस जमानी की उपाधि दी।
  • जहॉंगीर ने जोधपुर के महाराजा सूरसिंह को सवाई राजा की उपाधि दी थी।
  • जहॉंगीर के आमेर के महाराजा मानसिंह के साथ व्यक्तिगत सम्बंध अच्छे नही थे।
  • मुगल सम्राट जहॉंगीर की मृत्यु के बाद जगत गुसाई का पुत्र शहजादा खुर्रम शाहजहॉं के नाम से मुगल बादशाह बना।
  • शाहजहॉं के काल मे आमेर के महाराजा मिर्जा राजा जयसिंह, जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह, बीकानेर के महाराजा करणी सिंह, उदयपुर के महाराणा राजसिंह ने मुगलों का पूर्ण समर्थन एवं सहयोग दिया था।
  • बूॅंदी राव क्षत्रुशाल की मृत्यु के बाद उनके छोटे पुत्र राव माधो सिंह को बूॅंदी को कोटा से अलग कर कोटा का स्वतंत्र राजा बना दिया।
  • शाहजहॉं के काल में इन राजपूत शासकों के नेतृत्व में मध्य एशिया को विजय करने के लिए सैनिक अभियान भेजा गया।
  • प्रारम्भ में यह अभियान सफल रहा लेकिन वहॉं की स्थानिय उजबेक जनता के विद्रोह के कारण यह अभियान असफल रहा।
  • बीकानेर के महाराजा करणीसिंह की कुटनीति से सभी राजपूत शासक सुरक्षित हिन्दुस्तान लौटकर आये। इसलिए सभी राजपूत शासकों ने मिलकर शाहजहॉं की तरफ से करणीसिंह को जंगलधर बादशाह की उपाधि दी थी।
  • शाहजहॉं के जीवन के अन्तिम काल मे उसके चार पुत्रो के मध्य उत्तराधिकारी बनने का युद्ध हुआ। जिसमें प्रारम्भ में सभी राजपूत शासकों ने दाराशिकोह का साथ दिया लेकिन औरंगजेब की सफलता को देखते हुए सबने दाराशिकोह को साथ छोड़ दिया तथा औरंगजेब का साथ दिया।
  • मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह की उत्तराधिकार के युद्व में स्पष्ट नीति नही थी।
  • जब उत्तराधिकार के युद्व में औरंगजेब की विजय हुई तब औरंगजेब ने अपने शासन में शरीयत के नियम लागू कर दिये।
  • औरंगजेब ने 1669 ई0 में अपने प्रान्तीय सूबेदारों के नाम मन्दिरों को तोड़ने का फरमान जारी किया।
  • 1678 ई0 में जोधपुर के महाराजा जसवन्त सिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने उनके पुत्र अजीत सिंह को मारवाड़ का शासक मानने से मना कर दिया तथा जोधपुर को खालसा घोषित कर दिया। तब वीर दुर्गादास राठोड़ के नेतृत्व में राठोड़ो ने मुगलों के विरूद्व विद्रोह कर दिया। मेवाड़ के महाराजा राजसिंह ने भी राठोड़ो के समर्थन में मुगलों के विरूद्व विद्रोह कर दिया।
  • औरंगजेब ने 1679 ई0 में जजिया कर पुनः लगा दिया।
  • औरंगजेब ने इस प्रकार अकबर द्वारा प्रारम्भ की सुलह कुल की नीति का परित्याग कर दिया।
  • औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल दरबार षड़यंत्र एवं साजिशों का केन्द्र बन गया। फलस्वरूप राजपूत सरदारों में मुगल दरबार के प्रति उदासीनता फैल गई।

राजस्थान के राजपूतों और मुगलों के बीच संबंध भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह संबंध केवल युद्ध तक सीमित नहीं रहा, बल्कि संधि, वैवाहिक गठबंधन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और प्रशासनिक सहयोग के रूप में भी विकसित हुआ। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:


🛡️ 1. प्रारंभिक संबंध: संघर्ष और युद्ध

  • मुगलों का भारत आगमन बाबर के समय (1526) से हुआ और इसके बाद हुमायूँ ने भी राजपूतों से कुछ संघर्ष किए।
  • अकबर के समय से मुगल-राजपूत संबंधों में बड़ा परिवर्तन आया।

🔥 प्रमुख युद्ध:

युद्ध राजपूत शासक मुगल सम्राट
1535 – चित्तौड़ युद्ध राणा विक्रमादित्य हुमायूँ
1567–68 – चित्तौड़ युद्ध राणा उदयसिंह अकबर
1576 – हल्दीघाटी युद्ध राणा प्रताप अकबर (सेना – मानसिंह और असफ खान के नेतृत्व में)

🤝 2. अकबर के समय संधि और गठबंधन की नीति

अकबर ने राजपूतों को अपने साम्राज्य में शामिल करने हेतु एक समन्वयवादी नीति अपनाई।

मुख्य राजपूत जो अकबर के साथ जुड़े:

राजपूत शासक राज्य संबंध
राजा भारमल आमेर अपनी बेटी हरखा बाई (जोधा बाई) का विवाह अकबर से किया
राजा मानसिंह आमेर अकबर के नवरत्नों में से एक
राव कुंभा बीकानेर मुगल दरबार में अधिकारी
महाराजा उदय सिंह जोधपुर सहयोगी

मेवाड़ (राणा प्रताप) ने सबसे लंबे समय तक मुगलों का विरोध किया।


💍 3. वैवाहिक संबंध (Marriage Alliances)

  • अकबर ने राजा भारमल की बेटी से विवाह किया – यह पहला प्रमुख वैवाहिक गठबंधन था।
  • इसके बाद जहाँगीर और शाहजहाँ ने भी राजपूत कन्याओं से विवाह किया।
  • इससे मुगलों को राजपूतों का राजनीतिक समर्थन मिला और राजपूतों को साम्राज्य में उच्च पद

🏰 4. प्रशासन में सहभागिता

राजपूतों को मुगलों ने उच्च पद दिए:

नाम पद / उपलब्धि
राजा मानसिंह अकबर के नवरत्न, बंगाल और अफगान अभियानों का नेतृत्व
राजा जसवंत सिंह (मारवाड़) शाहजहाँ के समय उच्च सेनापति
राजा जयसिंह (आमेर) औरंगज़ेब के समय दक्षिण भारत में प्रमुख सैन्य अभियान का नेतृत्व

⚔️ 5. औरंगज़ेब का शासनकाल – पुनः संघर्ष

  • औरंगज़ेब की कट्टर धार्मिक नीति के कारण राजपूतों से संबंध बिगड़ने लगे।
  • मारवाड़ में succession crisis (धन सिंह की मृत्यु के बाद) – औरंगज़ेब ने हस्तक्षेप किया, जिससे ढाई साल का युद्ध हुआ।
  • इस समय आमेर और मेवाड़ दोनों ने विद्रोह किया।

🕊️ 6. संबंधों का परिणाम

सकारात्मक पक्ष नकारात्मक पक्ष
मुगल साम्राज्य को स्थायित्व मिला राजपूतों की स्वतंत्रता सीमित हुई
राजपूतों को उच्च पद और सम्मान मिला कुछ क्षेत्रों में आंतरिक असंतोष
सांस्कृतिक समन्वय (हिन्दू-मुस्लिम एकता) मुगलों की धार्मिक नीति से संघर्ष

📘 महत्वपूर्ण तथ्य परीक्षा के लिए

प्रश्न उत्तर
अकबर से सबसे पहले संधि किसने की? राजा भारमल (आमेर)
अकबर के नवरत्नों में कौन राजपूत था? राजा मानसिंह
हल्दीघाटी युद्ध कब हुआ? 18 जून 1576
ढाई साल का युद्ध किसके बीच हुआ? औरंगज़ेब और मारवाड़ के राजपूतों के बीच

📚 निष्कर्ष (Conclusion):

राजपूत और मुगलों के संबंधों में:

  • शौर्य और सम्मान था,
  • कभी संघर्ष, तो कभी संधि,
  • यह संबंध भारतीय इतिहास में धर्मनिरपेक्षता, राजनीतिक चतुराई, और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन गया।

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