राजस्थान में वन संसाधन

  • राजस्थान वनों की दृष्टि से निर्धन राज्य है।
  • राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार राज्य के कुल क्षेत्रफल के लगभग 33% भाग में कुल क्षेत्रफल के 9.51% भाग पर वन है।
  • वर्तमान में राजस्थान में सर्वाधिक वन क्षेत्र उदयपुर जिले में है।
  • जिले के क्षेत्रफल में प्रतिशत सर्वाधिक वन बांसवाड़ा जिले में है।
  • राजस्थान में सबसे कम वन चुरू जिले में है।
  • राजस्थान की कुल कार्यशील जनसंख्या का 0.4% रोजगार की दृष्टि से वनों पर निर्भर है।
  • राजस्थान के कुल वनों में सर्वाधिक संख्या धोकड़ा वृक्ष की है।
  • खेजड़ी को रेगिस्तान का कल्पवृक्ष कहा जाता है।
  • खेजड़ी को प्राचीन धर्म ग्रन्थों में इसे शमी वृक्ष के नाम से पुकारा जाता है।
  • राजस्थान में सर्वप्रथम वन संरक्षण की नीति जोधपुर रियासत के द्वारा घोषित की गई।
  • पंचवर्षीय योजना में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया जिसे सातवीं पंचवर्षीय योजना में विस्तृत रूप से पूरे राज्य में लागू किया गया।
  • सामाजिक वानिकी : वृक्षों की खेती
  • वृक्षों को संरक्षण देने के लिए सातवीं पंचवर्षीय योजना में रूख भायला कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम का प्रारम्भ राजीव गांधी के द्वारा डूॅंगरपुर जिले से किया गया।
राजस्थान में प्रशासनिक दृष्टि से वनों को तीन भागों में बांटा गया है।
  1. सुरक्षित वन : ऐसे वन जिन पर पूरा नियन्त्रण सरकार का होता है। तथा किन्हीं भी परिस्थितियों में इन वनों से न तो लकड़ी काटी जा सकती है। और नही पशु चराये जा सकते है।
  2. रक्षित वन : ऐसे वन जिन पर पूरा नियन्त्रण सरकार का होता है। तथा सरकार की अनुमति से इन वनों से लकड़ी भी काटी जा सकती एवं पशु भी चरायें जा सकते है।
  3. अवर्गीकृत वन : ऐसे वन जो वन विभाग की सम्पदा होते है तथा यहॉं से लकड़ी काटने एवं पशु चराने की स्वतन्त्रता होती है।
राजस्थान में सर्वाधिक रक्षित प्रकार के वन है।
वनों से लाभ :
  • वनों से इमारती एवं ईंधन लकड़ी प्राप्त होती है।
  • विष्व की सबसे लम्बी घास बॉंस है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक बॉंस चित्तोड़गढ़, उदयपुर एवं बांसवाड़ा ।
  • कदम्ब के वृक्षों से गोंद उतारा जाता है।
  • बाड़मेर का चौहटन क्षेत्र गोंद के लिए प्रसिद्व है।
  • प्लास वृक्ष को फूलों से लदा फलेम ऑफ दी फॉरेस्ट जंगल में आग की लपटें कहा जाता है।
  • राजस्थान में जनजाति क्षेत्रों में विशेषकर दक्षिण एवं दक्षिण-पष्चिमी भागों में मार्च से जून तक के महिने में तेंदु पत्ता इकट्ठा किया जाता है जो बीड़ी बनाने के काम आता है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक बीड़ियॉं टोंक में बनती है।
  • राजस्थान में एपीकल्चर योजना के तहत मधुमक्खी पालन एवं शहद उत्पादन का कार्य किया जाता है।
  • ऑंवला वृक्ष की छाल चमड़ा साफ करने के काम आती है।
  • राजस्थान की कथोड़ी जनजाति खैर वृक्ष के तनों से हॉंडी प्रणाली के द्वारा कत्था तैयार करती है।
  • राजस्थान में जनजाति क्षेत्रों में सेरीकल्चर योजना के तहत रेशम कीट पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
राजस्थान में भौगोलिक दृष्टि से वनों को सात भागों में बांटा गया है।
  1. मिश्रित वन : यह राजस्थान के सबसे सघन वन है। मिश्रित वन सर्वाधिक उदयपुर में पाये जाते है।
  2. शुष्क सागवान के वन : राजस्थान में सागवान के सर्वाधिक वन बांसवाड़ा जिले में पाये जाते है। इसके अतिरिक्त चित्तोड़गढ़, उदयपुर मे भी सागवान के वन मिश्रित रूप में पाये जाते है।
  3. उत्तरी उष्ण कटिबंधी पतझड़ के वन : राजस्थान के सर्वाधिक क्षेत्रों पर इन वनों का विस्तार है। इन वनों में आम, नीम, पीपल, खेजड़ी, बरगद के वन प्रमुखता से पाये जाते है।
  4. ढाक अथवा पलाश के वन : यह राजस्थान के नदी घाटी क्षेत्र की नम मिट्यिों में पाये जाते है। पलाश वृक्ष को फ्लेम ऑफ दी फॉरेस्ट कहा जाता है।
  5. सालर के वन : इन वनों में सर्वाधिक इमारती एवं ईंधन लकड़ी के योग्य वृक्ष पाये जाते है। यह वन राजस्थान के मध्य एवं मध्य पूर्वी भागों में पाये जाते है।
  6. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ के वन : पूर्वी एवं मध्य पूर्वी भागों मे पाये जाते है। वनों में वृक्षों की पत्तियॉं वर्ष में कम से कम एक बार पूरी तरह गिर जाती है।
  7. उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन : यह वन राजस्थान मे सिरोही जिलें में माउण्ट आबू पर्वत के चारों और 32 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में पाये जाते है।

Leave a Comment

error: