विदेशी संस्थागत निवेशक(Foreign Institutional Investor(FII)) यानि एफआईआई क्या होता हैं और यह हमारी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में कैसे योगदान देते है| भारत की अर्थवयवस्था में इस शब्द का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है और यह भारत के वित्तीय बाजारों में निवेश करने वाली बाहरी कंपनियों को संदर्भित करता है। आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे |
What is FII in Hindi?
FII यानि विदेशी संस्थागत निवेशक के लिए किसकी भी देश की अर्थववस्था में निवेश करने के कई तरीके हैं। पर सबसे सही और सीधा तरीका है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) वे संस्थागत निवेशक हैं जो उन देशो के बाहर के देशो में पंजीकृत है जिसमें वह निवेश कर रहे है। ऐसे संस्थागत निवेशकों में ज्यादातर हेज फंड, म्यूचुअल फंड, पेंशन फंड, इंश्योरेंस बॉन्ड, हाई-वैल्यू डिबेंचर, इनवेस्टमेंट बैंक आदि शामिल होते हैI विदेशी संस्थागत निवेशक की हमारी अर्थववस्था में बहुत महत्वपुर्ण भूमिका होती है। यह म्यूचुअल फंड, निवेश बैंक जैसी बड़ी कंपनियां होती है जो इंडियन मार्केट्स में बहुत बड़ी मात्रा में पूँजी निवेश करते है। वे अर्थव्यवस्था में आने वाले कुल प्रवाह पर मजबूत प्रभाव डालती हैं ।
विदेशी संस्थागत निवेशकों को समझना (एफआईआई)
एफआईआई में हेज फंड, इंश्योरेंस कंपनियां, पेंशन फंड, इन्वेस्टमेंट बैंक और म्यूचुअल फंड शामिल हो सकते हैं। विदेशी संस्थागत निवेशक विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी महत्वपूर्ण स्रोत हो सकते हैं,हालांकि भारत जैसे कई विकासशील देशों ने अपनी संपत्तियों के कुल मूल्य की सीमाएं निर्धारित करी हुई हैं जो एफआईआई द्वारा खरीदी जा सकती हैं और इक्विटी शेयरों की संख्या, विशेष रूप से एक ही कंपनी में खरीद सकते हैं । यह व्यक्तिगत कंपनियों और देश के वित्तीय बाजारों पर विदेशी संस्थागत निवेशकों के प्रभाव को सीमित करने में मदद करता है।
FII in India
एफआईआई गतिविधियों की मात्रा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में सबसे अधिक है। चूंकि ये अर्थव्यवस्थाएं गतिशील रूप से बढ़ रही हैं, इसलिए वे mature economies(परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं) की तुलना में उच्च विकास क्षमता की पेशकश करके निवेशकों के लिए बड़े अवसर प्रदान करते हैं । एफआईआई गतिविधियां सबसे अधिक भारत में पाई जाती हैं क्योंकि हमारे देश की अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है। इसीलिए सभी निवेशकों को एफआईआई की गतिविधियों में भाग लेने के लिए Securities and Exchange Board of India (SEBI) भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
उदाहरण के लिए, किसी अमेरिकी म्यूचुअल फंड की कंपनी भारतीय मूल मे लिस्टेड किसी कंपनी में अच्छी या उच्च वृद्धि वाले निवेश के अवसर को देखती है तो वह इंडियन शेयर मार्किट में शेयर्स को खरीद कर लम्बे समय तक अपनी स्तिथि को सुनिश्चित कर सकती है। यह लेन-देन घरेलू निजी निवेशकों के लिए भी लाभप्रद है जो भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड में पंजीकरण नहीं करा सकते हैं। वे म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं और उच्च विकास क्षमता में भाग ले सकते हैं।
क्या एफआईआई भारतीय कंपनियों में निवेश कर सकते हैं?
एफआईआई को देश के प्राथमिक और माध्यमिक पूंजी बाजारों में निवेश पोर्टफोलियो निवेश योजना के अंतर्गत करने की अनुमति है। एफआईआई भारतीय कंपनियों के स्टॉक और डिविडेंड में निवेश कर उन्हें खरीदने की अनुमति देती है।
उदाहरण के तौर पर,आरबीआई के नियमों के मुताबिक एफआईआई आम तौर पर निवेश करने की अधिकतम सीमा भारतीय कंपनी की पेड-अप पूंजी 24% हैं। हालांकि एफआईआई 24% से अधिक निवेश कर सकती है यदि उसे कंपनी के बोर्ड की तरफ से मंज़ूरी मिल जाये या कोई विशेष प्रस्ताव पारित हो जाये। विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश की अधिकतम सीमा भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पेड-अप पूंजी का केवल 20% है। एफआईआई किसी भी अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये निवेश बैंक, म्यूचुअल फंड आदि जैसी बड़ी कंपनियां हैं, जो भारतीय बाजारों में काफी मात्रा में पैसा निवेश करते हैं।
DII क्या है?
एक संस्थागत निवेशक एक निवेशक है जो उस देश में पंजीकृत है जिसमें वह व्यापार कर रहा है।
ये भारतीय संस्थागत निवेशक हैं जो शेयर बाजार में निवेश करते हैं। घरेलू संस्थागत निवेशक या डीआईआई भारतीय संस्थागत निवेशक है जो भारत के शेयर बाजार में निवेश करते हैं। डीआईआई में म्यूचुअल फंड हाउस, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया, वित्तीय संस्थान, बीमा कंपनियां, बैंक और वेंचर कैपिटल फंड शामिल हैं। भारत की सबसे बड़ी डीआईआई LIC (लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड) है।
प्रत्येक दिन DII प्रतिदिन शेयर बाजार में शेयर्स खरीदने और बेचने के लिए भाग लेता हैं। NSE और BSE दिन के अंत तक वेबसाइटों पर शेयर्स आंकड़े जारी करती हैं ।
जब कोई छोटे स्तर का निवेशक शेयर बाजार में शेयर्स को खरीदता या बेचता है तो वह शेयर्स के मूल्यों में फर्क नहीं कर सकता ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी शेयर्स खरीदने की मात्रा आमतौर पर बहुत कम होती है।
लकिन जब DII इन शेयर्स को खरीदते है तो वह शेयर मार्किट में बहुत बड़ी मात्रा में पैसे को निवेश करते है। जिससे उनकी मांग काफी बढ़ जाती है। मांग बढ़ जाने से इनकी सेल्स या आपूर्ति में कमी आती है और स्टॉक्स की कीमतों में वृद्धि हो जाती है।
जब स्टॉक या शेयर्स के मूल्यों में वृद्धि होती है तो NIFTY जिसमें भारत की 50 बड़ी और शीर्ष कंपनिया और Sensex जिसमें भारत की 30 बड़ी और शीर्ष कंपनिया शामिल है। उनकी वृद्धि भी उनके साथ स्वचालित रूप से हो जाएगी।
DII यानि Domestic institutional investors आमतौर पर देश में स्थित ये संस्थाए दूसरे निवेशकों और आम इन्वेस्टर्स के ज़रिये पैसे को इकठा करती है और उस पैसे को बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से शेयर मार्किट में निवेश किया जाता है।स्टॉक मार्किट में इनका बहुत बड़ा प्रभाव होता है |
भारत में मुख्य DII यानि घरेलू संस्थागत संस्थाएं निम्न प्रकार की है।
- Birla sun life asset management company Limited (बिरला सन लाइफ एसेट मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड)
- UTI Trust of India -युटीआई ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
- HDFC Mutual Fund-एचडीएफसी म्यूच्यूअल फंड्स
- ICICI Prudential Life Insurance Company Limited-आईसीआईसीआई पुरुडैनसिअल लाइफ इन्सुरेंस कंपनी लिमिटेड
- LIC -लाइफ इन्सुरेंस कंपनी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड- यह भारत की सबके बड़ी DII यानि भारतीय संस्थागत निवेशक संस्था है
शेयर बाजार के जोखिम या सही जानकारी न होने के कारण जो निवेशक निवेश नहीं कर सकते या पाते है। यह सस्थाएं ऐसे निवेशकों के लिए निवेश करने का सही या उचित माध्यम हो सकती हैं |
FDI और FPI क्या होता है?
निवेशक आमतौर पर दो रूप से किसी विदेशी अर्थव्यवस्था में निवेश कर सकता है -प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई)
FDI (Foreign Direct Investment) से तात्पर्य है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
आसान भाषा में एफडीआई का अर्थ होता है किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश की कंपनी में किया गया निवेश है। किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए पूंजी एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंश है। चूँकि बहुत से राष्ट्र अकेले अपनी कुल पूंजी की आवश्यकताओं को आंतरिक संसाधनों के द्वारा पूरा नहीं कर सकते हैं, इसलिए वे अपना रुख विदेशी निवेशकों की ओर करते हैं । विदेशी निवेशक आमतौर पर भारतीय कंपनियों के शेयर्स या बांड्स को खरीद सकते है। अगर कोई विदेशी कंपनी या फर्म भारत में निवेश करती है,तो वह भारत में अपनी कंपनी/शाखा/कार्यालय आदि की स्थापना कर सकती है।
आमतौर पर यह देखा गया है कि किसी निवेश को एफडीआई का दर्जा दिलाने विदेशी निवेशक को उस कंपनी के कम-से-कम10 फीसदी शेयर्स की खरीदना पड़ता है। और इसके साथ ही उसे निवेश वाली कंपनी में मताधिकार को भी हासिल करना पड़ता है।
FPI (Foreign Portfolio Investment)
एफपीआई/एफआईआई का अर्थ है वित्तीय परिसंपत्तियों में निवेश करना, जैसे किसी अन्य देश में स्थित संस्थाओं के स्टॉक और बांड अर्थात किसी विदेशी देश की वित्तीय पूंजी में निवेश करना।
जब कोई विदेशी निवेशक शेयर बाजार में listed इंडियन कंपनी के शेयर खरीदकर 10 प्रतिशत से कम हिस्सेदारी खरीदता है, तो उसे एफपीआइ कहते हैं। यह निवेश शेयरों और बांड के रूप में होता है।
इस तरह के निवेश को प्रत्यक्ष निवेश से कम कारगर माना जाता है क्योंकि पोर्टफोलियो निवेश को जल्दी से बेचा जा सकता है और इन्हें कई बार अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक निवेश के बजाय पैसा बनाने के अल्पकालिक प्रयासों के रूप में देखा जाता है । एफपीआई के कुछ उदाहरण किसी विदेशी देश के शेयरों में किए गए निवेश हैं। एक अन्य उदाहरण विदेशी सरकार द्वारा जारी बांड खरीदकर निवेश है । एफडीआई के विपरीत, एफपीआई उस व्यावसायिक इकाई पर नियंत्रण प्रदान नहीं करता है जिसमें निवेश किया जाता है।
एफपीआई आम तौर पर कम समय के लिए होता है। यह एक अनुपस्थित या छिपा हुआ निवेश होता है। यदि एक पोर्टफोलियो निवेशक किसी भारतीय कंपनी में अपने फायदे और नुकसान को देखते हुए अचानक उस कंपनी के शेयर्स को बेचकर वहां से भाग या निकल सकता है।
कुछ समय पहले निवेशकों के बीच एफपीआई और एफडीआई को लेकर काफी भ्रम था (उदाहरण के तौर पर कुछ एफपीआई किसी भारतीय कंपनी के 50% से जयादा शेयर्स को खरीदती है तो तकनीकी रूप से उस कंपनी पर उसका मालिकाना हक़ हो जाता है जो एक नई कंपनी खोलने के समान है।
इसके लिए केंद्र सरकार ने अरविंद मायाराम नामक एक पैनल बनाया,जिसमें सुझाव दिया कि किसी भी भारतीय कंपनी में एफपीआई निवेशक या फर्म से कोई भी निवेश, अगर वह कंपनी के कुल हिस्से का 10% से अधिक है, तो यह एफडीआई के अंतर्गत आएगा और यदि वह कंपनी के कुल हिस्से का 10% से कम है तो एफपीआई के अंतर्गत आएगा।