Rajasthan ki Pratha (राजस्थान की प्रथा)

राजस्थान में सर्वप्रथम 1822 ई. में बूॅंदी में सतीप्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया। बाद में राजा राममोहन राय के प्रयत्नों से लार्ड विलियम बैंटिक ने 1829 ई. में सरकारी अध्यादेश से इस प्रथा पर रोक लगाई।
सती प्रथा को सहमरण या अन्वारोहण भी कहा जाता है।
अधिनियम के तहत सर्वप्रथम रोक कोटा रियासत में लगाई।दास प्रथा
1832 में विलियम बैंटिक ने दास प्रथा पर रोक लगाई। राजस्थान में भी 1832 ई. में सर्वप्रथम कोटा व बूंदी राज्यों ने दास प्रथा पर रोक लगाई।

दहेज प्रथा
1961 में भारत सरकार द्वारा दहेज विरोध अधिनियम भी पारित कर लागू कर दिया गया लेकिन इस समस्या का अभी तक कोई निराकरण नही हो पाया है।

त्याग प्रथा
राजस्थान में क्षत्रिय जाति में विवाह के अवसर पर भाट आदि लड़की वालों से मुॅंह मांगी दान-दक्षिणा के लिए हठ करते थे, जिसे त्याग कहा जाता था।
त्याग की इस कुप्रथा के कारण भी प्रायः कन्या का वध कर दिया जाता था।
सर्वप्रथम 1841 ई. में जोधपुर राज्य में ब्रिटिश अधिकारियों के सहयोग से नियम बनाकर त्याग प्रथा को सीमित करने का प्रयास किया गया।

बेगार प्रथा
सामन्तों, जागीरदारों व राजाओं द्वारा अपनी रैयत से मुफत सेवाएॅं लेना ही बेगार प्रथा कहलाती थी। ब्राहाम्ण व राजपूत के अतिरिक्त अन्य सभी जातियों को बेगार देनी पड़ती थी। बेगार प्रथा का अन्त राजस्थान के एकीकरण और उसके बाद जागीरदारी प्रथा की समाप्ति के साथ ही हुआ।

विधवा विवाह
लार्ड डलहौजी ने स्त्रियों को इस दुर्दशा से से मुक्ति प्रदान करने हेतु सन् 1856 में विधवा पुनविवाह अधिनियम बनाया। यह श्री ईश्वरचन्द्र विघासागर के प्रयत्नों का परिणाम था।

डाकन प्रथा
राजस्थान की कई जातिया विशेषकर भील और मीणा जातियों में स्त्रियों पर डाकन होने का आरोप लगा कर उन्हे मार डालने की कुप्रथा व्याप्त थी। सर्वप्रथम अप्रैल, 1853 में मेवाड़ में महाराणा स्वरूप सिंह के समय में मेवाड़ भील कोर के कमान्डेन्ट जे.सी. ब्रुक ने खैरवाड़ा उदयपुर में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया।

पर्दा प्रथा
प्राचीन भारतीय संस्कृति में हिन्दू समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन नही था लेकिन मध्यकाल में बाहरी आक्रमणकारियों की कुत्सित व लालुप दृष्टि से बचाने के लिए यह प्रथा चल पड़ी, जो धीरे-धीरे हिन्दू समाज की एक नैतिक प्रथा बन गई।

बंधुआ मजदूर प्रथा या सागड़ी प्रथा
महाजन अथवा उच्च कुलीन वर्गो के लोगो द्वारा साधनहीन लोगों को उधार दी गई राशि के बदले या ब्याज की राशि के बदले उस व्यक्ति या उसके परिवार के किसी सदस्य को अपने यहाॅं घरेलु नौकर के रूप मे रख लेना बंधुआ मजदूर प्रथा कही जाती थी।

समाधि प्रथा
इस प्रथा में कोई पुरूष या साधु महात्मा मृत्यु को वरण करने के उदेश्य स ेजल समाधि या भू-समाधि ले लिया करते थे।

नाता प्रथा
इस प्रथा के अनुसार पत्नी अपने पति को छोड़कर किसी अन्य पुरूष के साथ रहने लग जाती है। यह प्रथा विशेषतः आदिवासी जातियों में प्रचलित है।

बाल-विवाह
प्रतिवर्ष राजस्थान में अक्षय तृतीया पर सैकड़ों बच्चे विवाह बंधन में बाॅंध दिए जाते है। अजमेर के श्री हरविलास शारदा ने 1929 ई. में बाल विवाह निरोधक अधिनियम प्रस्ताव किया, जो शारदा एक्ट के नाम से प्रसिद्व है।

डावरिया प्रथा
इस प्रथा में राजा-महाराजा व जागीरदारों द्वारा अपनी लड़की की शादी में दहेज के साथ कुछ कुॅंवारी कन्याएॅं भी दी जाती थी, जिन्हें डावरिया कहा जाता था।

अनुमरण
पति की मृत्यु कही अन्यत्र होने व वही पर उसका दाह संस्कार कर दिए जाने पर उसके किसी चिन्ह के साथ अथवा बिना किसी चिन्ह के ही उसकी विधवा के चितारोहण को अनुमरण कहा जाता है।

कन्या वध
राजस्थान में विशेषतः राजपूतों में प्रचलित इस प्रथा में कन्या जन्म लेते ही उसे अफीम देकर या गला दबाकर मार दिया जाता था।

केसरिया करना
राजपूत योद्वाओं द्वारा पराजय कि स्थिति में केसरिया वस्त्र धारण कर शत्रु पर टूट पड़ना व उन्हे मौत के घाट उतारते हुए स्वंय भी असिधरा का आलिंगन करना केसरिया करना कहा जाता था।

जौहर प्रथा
युद्व में जीत की आशा समाप्त हो जाने पर शत्रु से अपने शील-सतीत्व की रक्षा करने हेतु वीरागंनाएॅं दुर्ग में प्रज्जवलित अग्निकुंड में कूदकर सामूहिक आत्मदहन कर लेती थी, जिसे जौहर करना कहा जाता था।
केसरिया व जौहर दोनों एक साथ होते है तो वह साका कहलाता है। अगर जौहर नही हुआ हो और केसरिया हो गया हो तो वह अद्र्वसाका कहलाता है।

राजस्थान की प्रथाएँ (Customs / Traditions) उसकी सांस्कृतिक पहचान और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक हैं। ये प्रथाएँ सामाजिक जीवन, विवाह, युद्ध, सम्मान, नारी भूमिका और धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी हुई हैं।

यहाँ राजस्थान की प्रमुख प्रथाओं का संक्षिप्त और सरल विवरण प्रस्तुत है:


🌺 राजस्थान की प्रमुख प्रथाएँ (Important Customs of Rajasthan)

1. 🛡️ जौहर प्रथा (Jauhar Pratha)

  • अर्थ: युद्ध में हार निश्चित होने पर स्त्रियों द्वारा अग्नि में कूदकर आत्माहुति देना
  • उद्देश्य: अपमान और दासता से बचना।
  • प्रसिद्ध उदाहरण:
    • रानी पद्मिनी (चित्तौड़) – अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध
    • रानी कर्मवती – बहादुर शाह गुजरात के विरुद्ध

2. ⚔️ शाका प्रथा (Saka Pratha)

  • अर्थ: जौहर के बाद पुरुष योद्धाओं द्वारा केसरिया वस्त्र पहनकर मरते दम तक युद्ध करना
  • लक्ष्य: मातृभूमि और धर्म की रक्षा।

3. 👰 बाल विवाह प्रथा (Child Marriage)

  • अर्थ: छोटे बच्चों का विवाह।
  • स्थिति: पहले अत्यधिक प्रचलित, अब कानून द्वारा प्रतिबंधित।
  • कारण: सामाजिक सुरक्षा, परंपरा

4. 🧕 घूँघट प्रथा (Ghoonghat System)

  • अर्थ: विवाहित महिलाएँ बुजुर्गों और पुरुषों के सामने चेहरा ढंकती हैं
  • लक्ष्य: सम्मान का प्रतीक, किंतु अब कई क्षेत्रों में बदलती सोच

5. 🔥 सती प्रथा (Sati Pratha)

  • अर्थ: पति की मृत्यु के बाद पत्नी का चिता में स्वयं को जलाना
  • स्थिति: अब कानूनी रूप से प्रतिबंधित (1829 में लॉर्ड बेंटिक द्वारा)
  • प्रसिद्ध उदाहरण: रूपकंवर सती मामला (1987) – देओराला, सीकर

6. 🪔 पूत्रेष्टि यज्ञ और पुत्र प्राप्ति व्रत

  • अर्थ: पुत्र प्राप्ति हेतु विशेष व्रत या अनुष्ठान

7. 💍 नाता प्रथा (Nata Pratha)

  • अर्थ: विधवा या परित्यक्ता महिला का दूसरे पुरुष से सामाजिक रूप से पुनर्विवाह (कभी-कभी आर्थिक लेन-देन के साथ)।
  • स्थिति: विशेषकर भील, मीणा, गरासिया जैसी जनजातियों में

8. 🤝 सांठ-गांठ प्रथा

  • अर्थ: पूर्व वैवाहिक संबंध (engagement), बाल विवाह के समय रचाया जाता है।

9. 👑 पीहर प्रथा

  • विवाहिता महिला की मूल परिवार से सामाजिक और आर्थिक संबंध बनाए रखना

10. 💧 ओलख प्रथा

  • विवाह के बाद ससुराल पक्ष द्वारा वधू को पहचानने की एक रस्म

📌 संक्षिप्त तालिका (Summary Table)

प्रथा का नाम सारांश / उद्देश्य
जौहर युद्ध में हार तय होने पर स्त्रियों की आत्माहुति
शाका पुरुषों द्वारा मृत्यु तक युद्ध
बाल विवाह बच्चों का प्रारंभिक विवाह
घूँघट स्त्रियों का चेहरा ढकना
सती पति के साथ स्त्री का चिता में जलना
नाता विधवा या तलाकशुदा महिला का पुनर्विवाह
ओलख वधू की पहचान की रस्म

📚 महत्वपूर्ण तथ्य (Quick Facts):

  • जौहर स्थलों: चित्तौड़गढ़ (तीन बार), रणथंभौर, जैसलमेर
  • सती प्रथा समाप्ति: 1829 में ब्रिटिश शासन द्वारा (राजस्थान में बाद में)
  • रूपकंवर कांड: 1987, सीकर → सती निषेध कानून सख्त हुआ
  • नाता प्रथा – जनजातीय समाज में मान्यता प्राप्त

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