राजस्थान के गवरी नृत्य का श्रृंगार, पहनावा एवं मुख्य बिंदु

राजस्थान के गवरी नृत्य का श्रृंगार, पहनावा एवं मुख्य बिंदु-:

 ● प्रत्येक किरदार को एक अलग तरह का श्रृंगार करके सजाया जाता है। जिसमे लाल,पीले,नीले और काले रंगों का प्रयोग किया जाता है। सभी अपना श्रृंगार स्वयं ही करते है।

● प्रत्येक किरदार के लिए एक मुखोटा बनाया जाता है तथा उनका पहनावा 40 दिन तक एक जैसा रहता है।

● गवरी नृत्य नाट्य राजस्थान का सबसे प्राचीन लोक नाट्य है जो लोक नाट्यो का मेरुनाट्य कहा जाता है।

● गवरी नृत्य केवल अपने गाँव में ही नही खेला जाता है अपितु प्रत्येक दिन उस गाँव में भी जाता है जहाँ उनके गाँव की बहन-बेटी की शादी करवाई जाती है।

● जिस गाँव में गवरी खेली जाती है उस गाँव में उनके भोजन की व्यवस्था गाँव में शादी की हुई बहन-बेटी के द्वारा ही की जाती है।

समापन ” गलावाण और वलावण”-:


● गवरी का समापन ” गलावण और वलावण” की रस्म के साथ होता है।● माँ पार्वती या गोरजा की प्रतिमा जिस दिन बनाई जाती है उसे “गलावण” अर्थात बनाने का दिन कहते है।

● जिस दिन इस प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है उसे “वलावण” कहते है।

● एक दिन पूर्व सांय को भील समाज के लोग नृत्य करते हुए गाँव के कुम्हार के घर जाते जहाँ पूजा अर्चना कर मिट्टी के हाथी पर गोरजा की प्रतिमा को एक सवारी के रूप में माता जी के मंदिर में लाते है और यहाँ रातभर गवरी खेल का आयोजन होता है।

● गवरी समाप्ति के दो दिन पूर्व जवारे बोए जाती है।

● वल्लावण में गाँव के सभी वर्गों के लोग एकत्रित होकर माँ गोरजा की शोभायात्रा निकालते एवं माँ की प्रतिमा का विसर्जन गाँव के किसी जलाशय में कर दिया जाता है।

● वलावण के बाद गवरी के प्रमुख वाद्य “माँदल” को खूंटी पर रख दिया जाता है।

● इस पर्व पर कलाकारों के लिए रिश्तेदार,परिजन एवं गाँव के लोग पोशाकें, पगड़ी लाते है। जिसे ” पहिरावाणी” कहते है।

राजस्थान के इतिहास में भील जनजाति का योगदान अविस्मरणीय है और आज भी “गवरी” नृत्य के माध्यम से भील जनजाति ने राजस्थान को विश्व प्रसिद्ध बना रखा है।

गवरी नृत्य राजस्थान के भील जनजाति का एक प्रमुख पारंपरिक लोकनाट्य है, जो मुख्य रूप से उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद और उदयपुर के आसपास के आदिवासी क्षेत्रों में लोकप्रिय है। यह एक नाट्यप्रधान नृत्य-नाटिका है, जो धार्मिक आस्था, सामाजिक संदेश और लोकसंस्कृति का अनूठा मिश्रण है।


🎭 गवरी नृत्य के मुख्य बिंदु

🔹 1. प्रदर्शन का समय:

  • गवरी का आयोजन श्रावण मास की पूर्णिमा के बाद से शुरू होकर 40 दिनों तक चलता है।
  • यह हर साल भाद्रपद माह (सावन के बाद) में होता है।
  • इस दौरान पुरुष कलाकार अपने सभी घरेलू और व्यावसायिक कार्य त्याग कर केवल गवरी नृत्य में भाग लेते हैं।

🔹 2. धार्मिक और सामाजिक उद्देश्य:

  • गवरी शिव-पार्वती की पूजा से संबंधित है।
  • इसमें धार्मिक, पौराणिक कथाएं और समाज सुधार के विषयों को नाटक और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

🔹 3. पात्र और कथा:

  • प्रमुख पात्र होते हैं – राईबाई, भीलो-भिलनी, राजा, सेठ, राक्षस, पंडित, भैरू, आदि।
  • कथाएं लोक कथाओं, पौराणिक कहानियों या समकालीन सामाजिक घटनाओं पर आधारित होती हैं।

👘 गवरी नृत्य का श्रृंगार एवं पहनावा

🔸 1. केवल पुरुष ही करते हैं प्रदर्शन:

  • महिला पात्रों की भूमिका भी पुरुष ही निभाते हैं।

🔸 2. श्रृंगार और वेशभूषा:

  • पात्रों के अनुसार विशेष वेशभूषा, मुखौटे, सिर पर साफा, धोती-कुर्ता, गहने और रंग-बिरंगे वस्त्र पहने जाते हैं।
  • राईबाई और अन्य महिला पात्रों के लिए पुरुष रंग-बिरंगी साड़ी पहनते हैं और नकली गहनों का उपयोग करते हैं।
  • मुखौटे (Masks) का विशेष उपयोग किया जाता है – जैसे राक्षसों, जानवरों या पौराणिक पात्रों के लिए।
  • शरीर पर अक्सर भस्म, गेरू या प्राकृतिक रंगों का लेप लगाया जाता है।

🔸 3. वाद्य यंत्र:

  • प्रमुख वाद्य होता है ढोल, थाली, और कभी-कभी मांदल
  • संगीत के साथ ही संवाद और अभिनय होते हैं।

📌 विशेषताएं / मुख्य बिंदु संक्षेप में:

पहलू विवरण
क्षेत्र उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद (भील बाहुल्य क्षेत्र)
काल भाद्रपद (श्रावण पूर्णिमा के बाद 40 दिन)
उद्देश्य धार्मिक आस्था, समाज सुधार, मनोरंजन
पात्र केवल पुरुष, महिला भूमिकाएं भी पुरुष निभाते हैं
वेशभूषा पारंपरिक वस्त्र, मुखौटे, रंगीन श्रृंगार
वाद्य यंत्र ढोल, थाली, मांदल
प्रमुख पात्र राईबाई, भैरू, राजा-रानी, राक्षस आदि

यदि आप चाहें तो मैं इसका प्रदर्शन चित्र, वीडियो लिंक, या PDF नोट्स भी तैयार कर सकता हूँ।

राजस्थान के गवरी नृत्य का श्रृंगार, पहनावा एवं मुख्य बिंदु

राजस्थान के लोक नृत्य

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